भारत से ब्रिटिश लूट: एक अमूल्य धरोहर का खोया वैभव
भारत कभी "सोने की चिड़िया" कहा जाता था, लेकिन अंग्रेजों की लूट ने इसे अपनी समृद्धि और पहचान दोनों से वंचित कर दिया। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ब्रिटिश राज ने न केवल भारत के संसाधनों को लूटा, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और आर्थिक जड़ों को भी हिलाकर रख दिया। ऑक्सफैम की हालिया रिपोर्ट इस ऐतिहासिक अन्याय पर नया प्रकाश डालती है।1765 से 1900 के बीच अंग्रेजों ने भारत से 64.82 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की संपत्ति ब्रिटेन भेजी। यह राशि इतनी बड़ी थी कि लंदन जैसे शहर को 50 पाउंड के नोटों से चार बार ढका जा सकता था। यह तथ्य केवल भारत के शोषण की भयावहता को उजागर नहीं करता, बल्कि उपनिवेशवाद की विनाशकारी नीति की भी कहानी सुनाता है।
भारत की समृद्धि से ब्रिटेन की समृद्धि तक
अंग्रेजों के आगमन से पहले, भारत विश्व का सबसे धनी और शक्तिशाली देशों में से एक था। यहां का कपड़ा, मसाले और आभूषण पूरी दुनिया में प्रसिद्ध थे। 1750 में, वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में भारत का हिस्सा 25% था। लेकिन अंग्रेजों ने नीतिगत और आर्थिक तरीकों से भारत को इतना कमजोर कर दिया कि 1900 तक यह हिस्सा मात्र 2% रह गया।
अंग्रेजी नीतियों ने भारत के घरेलू उद्योगों को व्यवस्थित रूप से बर्बाद किया। कपड़ा उद्योग, जो भारत की आर्थिक रीढ़ था, को तहस-नहस कर दिया गया। भारतीय बुनकरों और कारीगरों को बेरोजगार बना दिया गया। भारतीय कच्चे माल का उपयोग ब्रिटिश मिलों में हुआ, और वहां तैयार उत्पादों को महंगे दामों पर भारत में बेचा गया।
ब्रिटेन के अमीरों का फायदा
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत से लूटी गई इस धनराशि का बड़ा हिस्सा ब्रिटेन के 10% सबसे अमीर लोगों की जेब में गया। रिपोर्ट के अनुसार, 64.82 ट्रिलियन डॉलर में से 52% संपत्ति केवल इन अमीर अंग्रेजों ने कब्जाई। यह असमानता का वही स्वरूप है, जो आज भी दुनिया में देखा जा सकता है।
असमानता की गहरी खाई: इतिहास से आज तक
ब्रिटिश राज की नीतियों ने केवल भारत को ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में असमानता के बीज बोए। ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि वर्तमान की बहुराष्ट्रीय कंपनियां उपनिवेशवाद की ही देन हैं। इनके काम करने के तरीके में एक समानता दिखती है—विकासशील देशों के संसाधनों का अधिकतम दोहन।
2024 में, हर सप्ताह औसतन चार नए अरबपति बने। लेकिन वहीं, दुनिया की 3.6 अरब आबादी गरीबी में जी रही है। यह 1990 से अब तक बहुत कम बदला है। वैश्विक आबादी का 44% हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे है, और इनमें से 10 में से एक महिला अत्यधिक गरीबी में जी रही है।
खरबपतियों का उदय और मस्क की कहानी
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनिया को अगले दशक में पहला खरबपति मिलेगा। टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ एलन मस्क, जिनकी वर्तमान संपत्ति 430 अरब डॉलर से अधिक है, इस खिताब के सबसे बड़े दावेदार हैं।
मस्क की सफलता आधुनिक पूंजीवाद का प्रतीक है। लेकिन यह भी सवाल उठता है कि जब कुछ लोगों की संपत्ति इतनी तेजी से बढ़ रही है, तो बाकी दुनिया इतनी गरीबी में क्यों है?
अंग्रेजों की नीतियों का दीर्घकालिक प्रभाव
ब्रिटिश नीतियों का असर केवल भारत की अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने सामाजिक ढांचे को भी कमजोर किया। भारत के किसान, जो कभी आत्मनिर्भर थे, ब्रिटिश कर नीतियों के कारण कर्ज के जाल में फंस गए। औद्योगिक उत्पादन की कमी ने बेरोजगारी बढ़ाई और गरीबी को गहराया। ब्रिटिश राज की नीतियों का उद्देश्य स्पष्ट था—भारत को उपभोक्ता बाजार और कच्चे माल के आपूर्तिकर्ता के रूप में इस्तेमाल करना। उन्होंने भारत को एक उपनिवेश तक सीमित कर दिया, जहां आर्थिक विकास और सामाजिक सुधार की कोई गुंजाइश नहीं थी।
आधुनिक दुनिया में असमानता का चेहरा
आज की दुनिया में, असमानता ब्रिटिश उपनिवेशवाद की विरासत का ही विस्तार है। 2023 में अरबपतियों की संपत्ति में 2 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि हुई, जो 2024 में 15 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई। यह पिछले दशक में दर्ज की गई दूसरी सबसे बड़ी वार्षिक वृद्धि थी।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के 10 सबसे अमीर लोग हर दिन 10 करोड़ डॉलर कमाते हैं। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या यह आर्थिक प्रगति समाज के सभी वर्गों को फायदा पहुंचा रही है?
कैसे आगे बढ़ें?
इतिहास के इन कड़वे सबकों से हमें अपनी नीतियों में बदलाव लाने की जरूरत है।
स्थानीय उद्योगों का पुनर्निर्माण:
भारत को अपने घरेलू उद्योगों को मजबूत करने की दिशा में काम करना होगा। शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर: गरीबी और असमानता को कम करने के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य पर निवेश बढ़ाना होगा।अंतर्राष्ट्रीय नीतिगत सुधार: वैश्विक स्तर पर ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए, जो विकासशील देशों के हितों की रक्षा करें।
इतिहास से प्रेरणा, भविष्य की ओर कदम
ब्रिटिश लूट और उसकी नीतियों ने भारत को गहरे घाव दिए हैं। लेकिन यह जरूरी है कि हम इस इतिहास से प्रेरणा लेकर अपने भविष्य को सुधारें। आज, जब असमानता की खाई और गहरी होती जा रही है, हमें न केवल अपने आर्थिक ढांचे को मजबूत करना होगा, बल्कि एक न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए भी प्रयास करने होंगे। भारत ने अपने अतीत में जो सहा है, वह हमें यह सिखाता है कि केवल आर्थिक विकास ही काफी नहीं है। समानता, समृद्धि और न्याय के लिए संगठित प्रयास ही हमें एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकते हैं।
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