राणा सांगा: मेवाड़ का अमर नायक और क्षत्रिय शौर्य का प्रतीक जिस शरीर पर 80 घाव हों, एक हाथ, एक पैर और एक आंख न हो फिर भी जो युद्धभूमि में डटा रहे, वह कोई साधारण योद्धा नहीं, राणा सांगा था। इतिहास के गौरवशाली पन्नों से भारतीय इतिहास में वीरता और आत्मबलिदान की जब भी बात होती है, महाराणा संग्राम सिंह यानी राणा सांगा का नाम सम्मान से लिया जाता है। 16वीं शताब्दी में मेवाड़ के सिसोदिया वंश के इस महान राजा ने न सिर्फ एक विशाल हिंदू साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि राजपूत एकता और राष्ट्रीय स्वाभिमान की ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी प्रेरणा देती है। प्रारंभिक जीवन और सत्ता संघर्ष राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1482 को हुआ। वे राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र थे। उनके बड़े भाइयों पृथ्वीराज और जयमल के बीच सत्ता संघर्ष के बीच सांगा ने विवेक और पराक्रम से अपना स्थान बनाया। भविष्यवाणी थी कि यही बालक मेवाड़ को नया गौरव देगा और हुआ भी यही। शासनकाल: मेवाड़ का स्वर्ण युग राणा सांगा ने 1508 से 1528 तक मेवाड़ पर शासन किया। उनका साम्राज्य उत्तर में सतलज से लेकर दक्षिण म...
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