लखनऊ नवाबों का शहर, यहां देखने के लिए बहुत कुछ है, प्राचीन भारत हो या मध्य भारत या फिर आधुनिक भारत हर समय को बताने के लिए यहां ऐसे -ऐसे भवन और स्थल हैं। जहां जाकर आप उस काल की कहानी को करीब से जान पाएंगे। एक ऐसी ही जगह है यहां पर सिकंदर बाग, मुख्य मार्ग पर स्थित इस बाग की दीवारें ब्रिटिश काल के दरिंदगी की दास्ता भी बताते हैं। 1857 की क्रांति जब हुई थी, तो उस समय करीब दो हजार से अधिक लोगों की यहां निर्मम हत्या कर दी गई थी, शव बाग में खुले ही छोड़ दिया गया था। सिकंदर बाग देखने में इस समय तो खूबसूरत लगता है, लेकिन कहा जाता है कि यहां शाम के समय डर लगता है। रात में कई तरह की आवाजें भी सुनने को मिलती है। इस बाग की एक और कहानी इसे और भी खास बनाती है और वह है विरांगना ऊदा। जब 10 मई 1857 की क्रांति हुई थी, उस समय ऊदा देवी लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह बेगम हजरत महल की सुरक्षा में तैनात थीं। उनके पति मक्का पासी नवाब की सेना में थे। इतिहासकार बताते हैं कि ऊदा देवी अपने पति से सैनिक से पूरी तरह से प्रशिक्षण लिया था।वह सैन्य सुरक्षा में भी तैनात थीं। क्रांति के समय अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को लखनऊ से कलकत्ता भेज दिया। फिर विद्रोह की कमान उनकी बेगम हजरत महल ने उठाया था। अंग्रेजों और नवाब के सैनिकों के बीच में भिड़ंत हुई, इसमें ऊदा देवी के पति मारे गए। बहुत से लोग मारे गए। पति की मौत का बदला लेने के लिए ऊदा देवी ने मातम मनाने की जगह अंग्रेजों को सबक सिखाने का निर्णय लिया। इसी सिकंदर बाग में अंग्रेजों ने दो हजार भारतीय सिपाहियों को घेरकर मार डाला। ऊदा देवी ने पुरुष का वेश बनाकर इस तलवार उठाया और एक नहीं करीब 36 अंग्रेजों के लहू से इस मिट्टी का तिलक कर दिया।
176 साल पहले बना था यह सिकंदरबाग
सिकंदरबाग को अवध के नवाब वाजिद अली शाह ने 1847-56 ई. में बनवाया था। इसका नाम उन्होंने अपने प्रिय बेगम सिकंदर महल के नाम पर रखा। उस समय पांच लाख रुपये में यह बाग तैयार हुआ था। एक साल बनने में लगा। यह ऊंची दीवारों से 137 वर्ग मीटर की चारदीवारी से घिरा है। इसके प्रवेश द्वार पर उत्कृष्ट स्थापत्य को देख सकते हैं। पैडोला शैली में आयताकार गुंबद है, आगे मछलियों के जोड़े भी हैं, जो उत्तर प्रदेश राज्य का चिन्ह है।
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