भारत में मनाए जाने वाले त्योहार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि प्रकृति और मनुष्य के गहरे संबंध को दर्शाते हैं। इन्हीं में से एक है छठ पूजा, जो सूर्य उपासना, आत्मसंयम और शुद्धता का अनोखा पर्व है। बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में इसे अत्यंत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। आज यह पर्व प्रवासी भारतीयों के बीच भी अपनी पहचान बना चुका है।
छठ पर्व की जड़ें वैदिक काल तक जाती हैं। ऋग्वेद में सूर्य की उपासना और उनकी ऊर्जा को जीवनदाता बताया गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में माता सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य की पूजा की थी। वहीं महाभारत में सूर्यपुत्र कर्ण प्रतिदिन जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। इसी परंपरा ने समय के साथ ‘छठ’ रूप धारण किया।
षष्ठी देवी, जिन्हें छठ माई कहा जाता है, को संतान और समृद्धि की देवी माना जाता है।
छठ पर्व चार दिनों तक चलता है। पहला दिन नहाय-खाय, जब व्रती स्नान कर शुद्ध भोजन करते हैं। दूसरे दिन खरना में गुड़-चावल की खीर बनती है, जिसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य में अस्त होते सूर्य को जल अर्पित किया जाता है और चौथे दिन उषा अर्घ्य में उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत पूरा किया जाता है। यह पूजा प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रतीक है।
छठ पूजा का वैज्ञानिक आधार भी बेहद गहरा है। सूर्य से मिलने वाली विटामिन D शरीर को ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करती है। व्रत शरीर को डिटॉक्स करता है और मानसिक संतुलन लाता है। पूजा में प्रयुक्त केले, नारियल, गन्ना, नींबू, गुड़ और मिट्टी के दीपक जैसे सभी तत्व पर्यावरण-हितैषी हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय किरणों की तीव्रता कम होती है, जिससे सूर्य की उपासना का यह समय वैज्ञानिक रूप से भी उपयुक्त है।
सामाजिक दृष्टि से छठ पूजा एकता, समानता और स्वच्छता का संदेश देती है। इस पर्व में कोई जाति, वर्ग या लिंग भेद नहीं होता; सभी घाट पर एक साथ पूजा करते हैं। महिलाएं इसकी मुख्य साधक होती हैं, जिससे यह नारी शक्ति और मातृत्व का प्रतीक बन जाता है। घाटों की सफाई, जल-संरक्षण और अनुशासन इस पर्व के अभिन्न अंग हैं।
छठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि जीवन दर्शन है। प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, आत्मसंयम और आंतरिक प्रकाश की खोज। यह सिखाता है कि जब मनुष्य सूर्य, जल और धरती के साथ तालमेल बिठाता है, तो जीवन में संतुलन और समृद्धि स्वतः आती है।
छठ पूजा हमें याद दिलाती है कि सभ्यता के विकास के बावजूद हमारी जड़ें प्रकृति से जुड़ी हैं। यही कारण है कि यह पर्व हर साल न केवल श्रद्धा का प्रतीक बनता है बल्कि स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक समरसता का भी सशक्त संदेश देता है।
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