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मार्च, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

नेपाल में हिंदू राष्ट्र की हुंकार, क्या लौटेगा राजशाही का सुनहरा दौर?

नेपाल में हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग़  नेपाल में  हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग एक बार फिर जोर पकड़ रही है। यह मांग न केवल धार्मिक पहचान से जुड़ी है, बल्कि देश के ऐतिहासिक राजशाही तंत्र की वापसी की चाहत को भी दर्शाती है। नेपाल, जो कभी दुनिया का एकमात्र आधिकारिक हिंदू राष्ट्र था, 2008 में राजशाही के अंत के बाद धर्मनिरपेक्ष देश बन गया। लेकिन अब जनता का एक बड़ा वर्ग और कुछ राजनीतिक दल इसे फिर से हिंदू राष्ट्र घोषित करने की वकालत कर रहे हैं। आइए, इस मांग के पीछे के कारणों, इतिहास और वर्तमान स्थिति को विस्तार से समझते हैं। नेपाल का ऐतिहासिक परिदृश्य:  राजशाही और हिंदू राष्ट्र नेपाल का इतिहास लंबे समय तक राजशाही से जुड़ा रहा है। 18वीं शताब्दी में पृथ्वी नारायण शाह ने गोरखा साम्राज्य की स्थापना की और विभिन्न छोटे-छोटे रियासतों को एकजुट कर आधुनिक नेपाल का निर्माण किया। इस दौरान नेपाल की पहचान एक हिंदू राष्ट्र के रूप में मजबूत हुई, क्योंकि शाह वंश ने हिंदू धर्म को राजकीय संरक्षण दिया। 19वीं और 20वीं शताब्दी में राणा शासकों ने सत्ता पर कब्जा किया, लेकिन राजा की प्रतीकात्म...

डिजिटल युग का नया उपनिवेशवाद: क्या तकनीकी दिग्गजों का वर्चस्व हमारी स्वतंत्रता सीमित कर रहा है?

उपनिवेशवाद का अर्थ अक्सर भौगोलिक नियंत्रण और संसाधनों के शोषण से जोड़ा जाता है, लेकिन 21वीं सदी में इसका एक नया रूप उभर रहा है डिजिटल उपनिवेशवाद। इस नए युग में Amazon, Facebook, Twitter, YouTube, Uber जैसी बहुराष्ट्रीय तकनीकी कंपनियां आर्थिक और सांस्कृतिक नियंत्रण स्थापित कर रही हैं। ये कंपनियां लोगों की आर्थिक स्वतंत्रता, डेटा, समय और रचनात्मकता पर अपना प्रभुत्व जमा रही हैं, जिससे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। कैसे हो रहा है डिजिटल उपनिवेशवाद? 1. बाजार पर नियंत्रण और आर्थिक निर्भरता Amazon जैसे ऑनलाइन मार्केटप्लेस ने छोटे और मध्यम व्यवसायों को एक बड़ा मंच दिया है, लेकिन इसके साथ ही उन्हें अपनी शर्तों पर बांध भी लिया है। छोटे विक्रेता अपने उत्पाद बेचने के लिए इस पर निर्भर हो जाते हैं, और Amazon अपने कमीशन और नीतियों के जरिए उनके मुनाफे का बड़ा हिस्सा नियंत्रित करता है। इसी तरह Uber और Ola जैसी कंपनियां कैब ड्राइवरों को रोजगार देती हैं, लेकिन उनका कमाई का बड़ा हिस्सा प्लेटफॉर्म के पास चला जाता है और उनके पास अपनी सेवाओं पर नियंत्रण नहीं रहता। 2. सूचना और विचारों पर नियंत्रण Facebook, ...

जब इंटरनेट सब जानता है, तो शिक्षा का राज क्या?

आज के डिजिटल युग में, जब मोबाइल और इंटरनेट पर हर तरह की जानकारी कुछ सेकंड में उपलब्ध है। अगर नॉलेज इतनी आसानी से मिल सकती है, तो फिर शिक्षा का असली मकसद क्या है? क्या यह सिर्फ जानकारी इकट्ठा करना है, या इसके पीछे कुछ और भी है? आइए इसे समझने की कोशिश करें। शिक्षा का पारंपरिक मकसद:  नॉलेज से आगेपारंपरिक रूप से शिक्षा को ज्ञान (नॉलेज) प्राप्त करने का जरिया माना गया है। प्राचीन भारत में गुरुकुल हों या यूरोप के विश्वविद्यालय, शिक्षा का लक्ष्य था व्यक्ति को विज्ञान, कला, गणित, और दर्शन जैसी विधाओं में पारंगत करना। लेकिन यह सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं था,इसका मकसद था व्यक्ति को जीवन के लिए तैयार करना, उसे सोचने, समझने और समाज में योगदान देने की काबिलियत देना।डिजिटल युग में नॉलेज की सुलभताआज मोबाइल और इंटरनेट ने नॉलेज को लोकतांत्रिक बना दिया है। आप गूगल पर सर्च करें या यूट्यूब पर वीडियो देखें, आपको हर विषय की जानकारी मिल जाएगी- चाहे वह इतिहास हो, साइंस हो, या कोई स्किल। लेकिन क्या यह जानकारी ही शिक्षा है? नहीं। जानकारी (Information) और ज्ञान (Knowledge) में फर्क है। जानकारी बिखरी हुई ...